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हमारे पूर्वज एक दिन के खाने के लिए दिन भर मेहनत करते थे. फिर भी, पुरे परिवार के लिए प्रचूर सामग्री नहीं जुटा पाते थे.

यह कहना अनुचित नहीं होगा की हम तब तक खाते रहते हैं, जब तक हमें संतुष्टि नहीं मिलती. हमें संतुष्टि की अनुभूति तब होती है, जब खाद्य पदार्थ अत्यन रुचिकर हो और हम पेट भरकर  खा सकें. यदि हमारा मनपसंद भोजन हो, हमें भूख लग जाती है. यह मानसिक असंतुलन का नतीजा है. हमें आवश्यकता अनुसार ही खाना चाहिए मगर सवाल उठता हैं, कितनी आवश्यकता हैं?

कितना भोजन आवश्यक है?

इसका कोई दृढ़ पैमाना नहीं है. परन्तु खाद्य पदार्थ पोषक और स्वादिष्ट होना चाहिए न की स्वादिष्ट और गरिष्ठ. हमारा अमाशय मुश्किल से मुठ्ठी भर होता है. और हम उसमें इतना खाना भरते जाते हैं की कुछ सालों में उसका आकार जरुरत से ज्यादा बड़ा हो जाता है. और अमाशय का बढ़ता आकार ज्यादा भोजन की मांग करता है.

पेट भरकर खाने की बजाय हमें यह सोचकर खाना चाहिए की हमारा अमाशय एक मुठ्ठी के आकार का है और इसे उतने ही भोजन की आवश्यकता है. यदि पेट नहीं भरा कोई बात नहीं, थोड़ी थोड़ी मात्रा में तीन से चार बार सुविधानुसार लीजिये. 

अधिक भोजन क्यों है हानिकारक?

जैसा की आप जानते हैं, अधिक भोजन हमारे अमाशय का आकार बढ़ाता है. बढ़े हुए पेट को ज्यादा भोजन की आवश्यकता होती है. और हम अधिक भोजन लेने के आदी हो जाते हैं. अधिक खाद्य पदार्थ पेट में जाने पर उसे पचाना मुश्किल होता है. इस हालत में उसे पचाने के लिए अधिक मात्रा में पित्त (acid) का निर्माण होता है. जिससे acidity हो जाता है. एसिडिटी ज्यादा दिन तक होने से अल्सर हो सकता है. और अल्सर पेट के कैंसर का रूप ले सकता है. 

भोजन ठीक से न पचने की वजह से शरीर को आवश्यक तत्व नहीं मिलते और हमारा शरीर कमजोर होने लगता है. हारमोंस का संतुलन बिगड़ जाता है जिससे मोटापा, मधुमेह और संधिवात जैसी बीमारियाँ घेर लेती है.

शारीरिक मेहनत के अनुरूप पोषक तत्त्व आवश्यक है.

अधिक परिश्रम करने वाले व्यक्ति को ज्यादा उर्जा की आवश्यकता पड़ती है. ज्यादा उर्जा ज्यादा पोषक तत्वों से आती. जब हम ज्यादा मेहनत करते हैं और कम खाते हैं तो भी शरीर कमजोर हो जाता है. अतः अपनी दिनचर्या के अनुरूप खाने में अधिक पोषण तत्वों से परिपूर्ण फलों, सब्जियों और अन्य खाद्य पदार्थों को शामिल करें.

हमारे पूर्वज हमसे ज्यादा शक्तिशाली थे.

कई लोग कहते हैं, हमारे पूर्वज इसलिए अधिक शक्तिशाली थे क्योंकि वे अधिक खाना खाकर पचाने की छमता रखते थे. ऐसा बिलकुल नहीं है. हमारे पूर्वज एक दिन के खाने के लिए दिन भर मेहनत करते थे. फिर भी, पुरे परिवार के लिए प्रचूर सामग्री नहीं जुटा पाते थे. जो भी मिलता था बिना किसी चिंता या दबाव के खाते थे. उसी में वे संतुष्ट रहते थे. और हम बिना काम किये खाना पसंद करते हैं. इसी कारण से हम अपेक्षाकृत कमजोर हैं. हमारे अन्दर पुरुषार्थ की कमी है.

खाद्य पदार्थ एक तरह का मीठा ज़हर है, यदि अनियंत्रित तरीके से इसका सेवन करेंगे. संतुलित आहार तन और मन दोनों के लिए स्वास्थ्य वर्धक होता है. 

क्या करें…

  • खाने में हरी शब्जियाँ, फल, और सलाद का सेवन करें.
  • उतना ही खाइए, जितना  पचाने के लिए दवा की जरुरत न पड़े.
  • थोड़ी-थोड़ी मात्रा में ३ से ४ बार खाएं.
  • सुबह का नास्ता किसी भी हाल में न त्यागें.
  • प्रचूर मात्रा में पानी पियें. कभी – कभी प्यास को भी हम भूख समझने की भूल कर बैठते हैं, इसका ध्यान रखें.

क्या न करें…

  • तली, खट्टी, और मसालेदार खाद्य पदार्थों से परहेज रखें.
  • पैकेट बंद सामग्री इस्तेमाल न करें.
  • सफ़ेद चीजें जैसे की, दूध, दही, शक्कर, नमक, मैदा इत्यादि का सेवन कम से कम करें.
  • जंक फ़ूड जैसे पकौड़े, समोसे इत्यादि अनावश्यक रूप से न खाएं.

खाद्य पदार्थों पर दूसरों का भी अधिकार है

जब हम जबरन, जरुरत से ज्यादा खा रहे होते हैं, उस वक्त दुनिया के किसी कोने में हजारों लोग भूख से मर रहे होते हैं. हमेशा याद रखें— उतना ही भोजन ग्रहण करें जितना शरीर के लिए आवश्यक है. भोजन नुकसान न करें. हो सके तो किसी भूखे की मदद करें. 

आपके आस पास कुछ संस्थाएं भी हो सकती हैं. जो बचा हुआ भोजन इकठ्ठा करके गरीबों में बांटती हैं. उनसे संपर्क करें. पार्टी या फंक्शन के उपरांत बची सामग्रियां उन्हें देने से किसी भूखे की भूख मिट सकती है. 

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