Importance of Discipline

सर्वप्रथम अनुशासनहीनता का शिकार व्यक्ति खुद हो जाता है. वह खुद को नकारने लगता है. कभी अपनी क्षमता को नकार देता है, कभी कर्तव्यों को तो कभी अपने अस्तित्व को. और उसके अंदर आलश्य, उदासीनता, हीन भावना, घृणा तथा क्रोध इत्यादि बढ़ने लगता है. अंतर्मन के ये शत्रु किसी विद्वान् एवं बलशाली मनुष्य को भी सफल नहीं होने देते. 

अनुशासन की बात चलते ही कुछ यादें ताज़ा हो जाती हैं. बचपन में कदम-कदम पर इस शब्द का सामना करना पड़ता था. अनुशासन का दायरा भी बचपन की तरह छोटा होता था. जैसे:- अपने से बड़े लोगों का पैर छूकर प्रणाम करो, गुरुजनों को आदरपूर्वक नमन करो या सुबह जल्दी उठकर पढ़ाई करो तथा दिनचर्या से संबंधित अनेक छोटी – छोटी बातें जो हमारे भीतर संस्कार के बीजारोपण में सहायक थीं. 

जब हम बड़े होते हैं तो अनुशासन भी बड़ा रूप धारण कर लेता है. जैसे:- कार्यालय में प्रायोजित प्रतिबंध, हजारों लोगों की बे-वजह जी हुजूरी, पारिवारिक वातावरण को सहेजने की ज़िम्मेदारी, समाज तथा रिश्तेदारों के प्रति कर्तव्य इत्यादि. जब हमारे लिए इस प्रकार के सारे अनुशासन अर्थविहीन लगने लगते हैं. तब हमारे अंदर इन अनचाहे जंजीरों को तोड़ने की इच्छा प्रबल होने लगती है. और नाना प्रकार के अनुशासनहीनता का प्रादुर्भाव होता है.

अनुशासनहीनता 

सर्वप्रथम अनुशासनहीनता का शिकार व्यक्ति खुद हो जाता है. वह खुद को नकारने लगता है. कभी अपनी क्षमता को नकार देता है, कभी कर्तव्यों को तो कभी अपने अस्तित्व को. और उसके अंदर आलश्य, उदासीनता, हीन भावना, घृणा तथा क्रोध इत्यादि बढ़ने लगता है. अंतर्मन के ये शत्रु किसी विद्वान् एवं बलशाली मनुष्य को भी सफल नहीं होने देते.  

उपर्युक्त विवरण से आप समझ चुके होंगे की अनुशासन (Discipline) का विस्तार जितना अब तक सोचते या जानते थे उससे कहीं अधिक है. तो आइये जानते हैं Importance of Discipline और क्यों यह बाध्यता नहीं अपितु आवश्यकता है?

अनुशासन का महत्त्व (Importance of Discipline)

अनुशासन का जीवन में बड़ा महत्त्व है. यदि सफल लोगों में कोई एक क्वालिटी जो असफल लोगों से अलग करती है तो वह है अनुशासित जीवन निर्वाह. कार्य का प्रारूप बनाने से लेकर उसे मूर्तरूप देने तक, स्वयं की दिनचर्या से लेकर सामाजिक कर्तव्यों तक तथा अर्थोपार्जन से लेकर खर्च एवं निवेश, सब कुछ अनुशासित होता है. 

रात में सोने का समय, सुबह उठने का समय, व्यायाम, किताबें पढना, आने वाले दिन की तय्यारी करना हमारे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. और इन सारे कार्यों को अनुशासनपूर्वक पूरा करना उतना ही आवश्यक है जितना सासों का लेना. यदि मनुष्य अनुशासन में नहीं, तो वह मनुष्य के रूप में पशु है. शास्त्रों में ऐसे लोगों को धरती का भार कहा गया है. ईश्वर ने सबको एक सामान 24 घंटे का समय दिया है. प्रमादी व्यक्ति के लिए यही 24 घंटे 10 घंटे की भांति समाप्त हो जाता है और अनुशासित व्यक्ति उन्हीं 24 घंटों में 2 से 3 दिन का कार्य ख़तम कर लेता है.

Time Management (समय को अनुशासित रूप से व्यतीत करना चाहिए )

एक मशहूर मूर्तिकार की मूर्ति डेविड के बारे में किसी ने पूछा, कि इतना सुदर छवि आपके दिमाग में आई कैसे? तो उन्होंने सीधा सा जवाब दिया. “इस मार्बल के टुकडे को जब पहली बार सड़क के किनारे देखा तो मेरे मन में खयाल आया की यह मेरी मूर्ति के लिए उपयुक्त है. इसके बाद इसमें से वो सब कुछ निकालना बाकी था जो डेविड नहीं था. Time Management भी कुछ ऐसा ही है. उन सारे कामों को फ़िल्टर कर दो जो आवश्यक तो हैं लेकिन अत्यावश्यक नहीं हैं. 

जब आप इंजिनियर बनना चाहते हैं तो आपको उपन्यास पढ़कर किताबी कीड़ा बनाने की आवश्यकता नहीं. आपको दर्शन में अपना भविष्य दिखता है तो तारों की भाषा समझने की आवश्यकता नहीं. कहने का मतलब जो आपका लक्ष्य है, उसी के अनुरूप पढाई – लिखाई और लाइफ स्टाइल होनी चाहिए.

आपका कम्फर्ट ज़ोन और अनुशासन  

सबका एक कम्फर्ट ज़ोन होता है. कोई इससे बाहर नहीं आना चाहता. यह हमें कोई भी महत्वपूर्ण एवं बड़ा निर्णय लेने से रोकता है. सफलता उसी को मिलती है जो इस परिधि से बाहर निकलने का हिम्मत रखता है. चाहे 9 से 6 का जॉब ही क्यों न हो, बिना इस लक्ष्मण रेखा को पार किये कुछ भी संभव नहीं. कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलने के लिए अनुशासन सबसे महत्वपूर्ण हथियार है. 

जब हमें पता है, काम न करने से जीवन का निर्वाह असंभव है और मेरी अनुपस्थिति कई लोगों के परेशानी का कारण बन सकती है, तो भी हम उसके प्रति उदासीन हो जाते हैं. यदि आपको दिया गया कार्य पसंद ही नहीं था तो स्वीकार क्यों किया? कार्य को स्वीकार करना तो आपकी मजबूरी थी परन्तु उसे ख़तम करना आप अपनी मजबूरी नहीं समझते. यह अनुशासनहीनता है. अतः आपको अपने लिए खुद नियम बनाना चाहिए और उससे बाध्य रहना चाहिए.

दार्शनिकता की आड़ में अनुशासनहीनता

मैंने एक किताब पढ़ा था. किताब का नाम था Flow Like a River. इसमें कभी – कभी कुछ निर्णय समय पर छोड़ देने की बात कही गई है. कुछ अनावश्यक विचारों को भी स्वीकार कर लेना चाहिए. समयानुकूल निर्णय लेना चाहिए. वर्तमान के आनंद की अनुभूति करनी चाहिए इत्यादि इस पुस्तक में उल्लिखित है. कुछ लोग लेखक के इस गूढ़ किताब को हर बंधनों से मुक्त हो जाने का दर्शन समझते हैं. परन्तु ऐसा नहीं है. नदियों को भी किनारों की आगोश में बहना पड़ता है. 

वर्तमान में ठहर जाना भी अनुशासन है. किसी तथ्य को स्वीकार करना भी अनुशासन है. समयानुकूल निर्णय क्षमता भी अनुशासन के दायरे में होता है. अनुशासनहीनता केवल उदासीनता को जन्म देती है निर्णय क्षमता को नहीं. आशा है आप समझ चुके होंगे की जीवन में Importance of Discipline क्या है? और क्यों आपको अनुशासित जीवन जीना चाहिए? शुरू में कम्फर्ट ज़ोन से बाहर निकलना कष्टप्रद हो सकता है. परन्तु आपको बार बार कोशिश करनी चाहिए. लगातार करते रहने से असंभव भी संभव हो जाता है. जब आपके लिए अनुशासन में रहना सहज हो जायेगा, आप किसी भी कार्य को आसानी से एवं प्रसन्नतापूर्वक संपन्न कर पाएंगे. 

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