Natural Life – Nature’s Law of Vacuum

हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही हमारा शरीर दिमाग से सकारात्मक एवं नकारात्मक सिग्नल प्राप्त करता है. जहाँ सकारात्मक उर्जा हमें कार्यान्वित करती है वहीं नकारात्मक उर्जा हमें कर्महीन तथा उदासीन बनाती है.

प्रकृति का नियम है वह रिक्त स्थान को भर देती है. उदाहरण के तौर पर यदि किसी उपजाऊ जमीन पर खेती न की जाये, वह जमीन अनावश्यक घासों से भर जाती है. यह प्राकृतिक रूप से गलत नहीं है. परन्तु जो हम फसलें उगाकर जीवनोपयोगी तत्त्व उत्पन्न कर सकते हैं वह हमें उनुपयोगी घासों से प्राप्त नहीं होगी.

जब हम नए घर में प्रवेश करते हैं, वह बहुत ही साफ़ सुथरा और करीने से सजा हुआ होता है. केवल उपयोगी वस्तुएं होती हैं. धीरे धीरे हम उसमें कई तरह के उनुपयोगी वस्तुएं रखते जाते हैं और हमें पता भी नहीं होता हम क्या कर रहे हैं. घर निरंतर भरता रहता है.

कभी – कभी अनुपयोगी वस्तुओं की इतनी भरमार हो जाती है की हमें उपयोगी वस्तुओं को रखने के लिए स्थान नहीं बचता. समय समय पर साफ़ सफाई और रख रखाव से उसे खुबसूरत रख सकते हैं. ठीक इसी तरह से हमारा दिमाग भी है.

हमारी कुछ आदतें

हम सभी जानते हैं दिमाग का काम सोचना और शरीर को सुरक्षित रखने हेतु कार्यरत रहना है. जैसे खाली पड़े खेत में हम फसलें उगाकर मन चाहा अन्न प्राप्त कर सकते हैं, उसी भांति दिमाग में सकारात्मक एवं रचनात्मक सोच के जरिये शरीर को उपयोगी कार्यों में लगा सकते हैं.

हम जैसा सोचते हैं, वैसा ही हमारा शरीर दिमाग से सकारात्मक एवं नकारात्मक सिग्नल प्राप्त करता है. जहाँ सकारात्मक उर्जा हमें कार्यान्वित करती है वहीं नकारात्मक उर्जा हमें कर्महीन तथा उदासीन बनाती है.

हमें नकारात्मक होने की आवश्यकता नहीं पड़ती

यदि दिमाग में सकारात्मक बीज न बोये जाएँ, नकारात्मक घासें अपने आप उगने लगती हैं. ये घासें हमारे लिए पूरी तरह अनावश्यक हैं. इससे चिंता, उदासीनता और ग्लानि जैसी घातक प्रवित्तिया उत्पन्न होती हैं. अत्यधिक ग्लानि में जीने वाला व्यक्ति आत्महत्या भी कर सकता है. स्वयं को निकृष्ट समझने वाला व्यक्ति ग्लानि से ग्रसित होता है.

हर व्यक्ति के अन्दर कोई न कोई विशेषता होती है. जो व्यक्ति अपनी विशेषता जान लेता है, उसे लक्ष्य प्राप्ति में कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं होता. आत्मविश्वास से भरे हुए व्यक्ति के अन्दर ग्लानि नामक अनावश्यक अतिक्रमण के लिए रिक्त स्थान नहीं होता.

व्यवहारिक जीवन में अतिक्रमण

कुछ तथ्यों को समझकर सही उपयोग करने से हम सम्पन्न जीवन जी सकते हैं. एक सीधा सा उदाहरण देखिये. आपके पास ज्यादा खर्च करने के लिए पैसे नहीं है. आपका सेलफोन ख़राब है परन्तु उसी से किसी तरह अपना काम निकाल रहे हैं. आपको उसे इस्तेमाल करने पर गुस्सा भी आता है. नंबर कुछ और दबावो कुछ और दबता है. आपके दोस्त भी कई बार बोल चुके हैं नया फ़ोन ले लो. परन्तु आप हमेशा मज़बूरी का रोना रोते हैं.

अचानक एक दिन आपका फ़ोन बिलकुल ख़राब हो जाता है. बिना फ़ोन के हफ्ता या महीना गुजरना मुश्किल हो जाता है. किसी न किसी तरह आप फ़ोन ले ही लेते हैं.

अतिक्रमण हटायें

सबसे पहले आपको यह देखना होगा की हमारे रास्ते में वह कौन सा अतिक्रमण या बाधा है जिसके रहते हम उचित फसल नहीं उगा सकते. यदि आपके पास जीवनोपयोगी जरुरी कार्य करने हेतु समय नहीं है, तो अपनी दिनचर्या का अवलोकन कीजिये. आप देखेंगें … सबसे ज्यादा समय बेकार की क्रिया-कलापों में गुजर जाता है.

ये वो घासें हैं जो आपके द्वारा रोपित पौधों के नवपल्लव नष्ट कर देती हैं. जैसे …. सोशल मीडिया, टीवी, म्यूजिक, गपशप इत्यादि. आप इन्हें हटाकर अपना समय रचनात्मक कार्यों में लगा सकते हैं.

कभी – कभी आपको कुछ बड़े कदम भी उठाने पड़ते हैं. जब आपको पता है, आपका मौजूदा जॉब आपके लिए ठीक नहीं है. और आप इससे अच्छा कर सकते हैं तो नए कार्य की सुरुआत करने से पहले पुराने जॉब को छोड़ना पड़ता है. जब तक नए कार्य हेतु रिक्त स्थान नहीं आएगा उसकी सुरुआत नहीं होगी. ऐसे कदम उठाने से पहले अपनी योग्यता का अवलोकन करना अति आवश्यक होता है.

एक म्यान में दो तलवार नहीं रख सकते 

जब आँखें सुन्दरता देखती हैं कुरूपता उसे दिखाई नहीं देता. प्रसन्नता और अराजकता एक साथ आपके अन्दर नहीं रह सकती. जब आपके अन्दर सकारात्मक सोच होता है, नकारात्मक प्रभाव अपने आप नष्ट होने लगते हैं. प्रसन्नचित रहने से वे लक्ष्य भी प्राप्त हो जाते हैं जो वस्तुतः अप्राप्य प्रतीत होते हैं.

सारांस यही है की, अपने दिमाग का  समुचित उपयोग करें अन्यथा एक उर्दू कहावत के अनुसार— खाली दिमाग सैतान का घर होता है. अतः तमाम गलत विचार आपको ग्रसित कर लेंगे. जीवन नरक समान और शरीर जिन्दा लास हो जाएगी. 

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