Social media is no more social
जब अपने से बड़े उम्र के व्यक्ति, जो की शायद आपसे अनुभव में भी बड़े हों; आप उन्हें कहते हैं – “Uncle you are stupid”. तो कहना पड़ता है – लोगों को जोड़ने वाला माध्यम सामाजिक नहीं रहा.
जी हाँ! और इसका सबसे बड़ा कारण है हमारा एक दूसरे से व्यवहार सामान्य नहीं है. दूसरे शब्दों में हमारा सम्बन्ध सामाजिक नहीं है. जब अपने से बड़े उम्र के व्यक्ति, जो की शायद आपसे अनुभव में भी बड़े हों; आप उन्हें कहते हैं – “Uncle you are stupid”. तो कहना पड़ता है – लोगों को जोड़ने वाला माध्यम सामाजिक नहीं रहा. यदि आपके चाचा या दादा के उम्र का कोई व्यक्ति मुर्ख हो भी, आप उसे मुर्ख कहना नहीं चाहेंगे. क्योंकि वे आपके सन्मुख उपस्थित होंगे और आप उनका सम्मान भी करते होंगे. सोशल मीडिया में किसी व्यक्ति विशेष को मनोरंजन का पात्र समझा जाता है. यदि आपके आदर्श और उसके विचारों में अंतर हुआ तो आप वो सब कुछ कह जाते हैं जो किसी भद्र पुरुष या स्त्री को शोभा नहीं देता.
इतना ही नहीं, जब एक नवयुवक अपना स्वैग दिखा रहा होता है तो उसे भी पता होता है की इसे मेरे रिश्तेदार या मुझसे बड़े लोग भी देख रहे होंगे. परन्तु वह निर्भीक और उदंड होता है. गौर से देखा जाये तो सोशल मीडिया हमारे अस्तित्व को संबल देने वाले संस्कार को भी नष्ट रहा है. मेरा अनुभव सोशल मीडिया में 13 सालों का रहा है जब Orkut का ज़माना था, 12 साल से Facebook और 11 साल से Twitter पर हूँ. परन्तु जितना पतन इधर कुछ सालों में हुआ है, उतना शायद ही कभी हुआ था.
लोग अपना संस्कार भूल गए हैं
Facebook पर लोग गाली गलौज कर रहें हैं, तो Twitter पर एक दुसरे की खिचाई. 10 वीं में पढने वाला लड़का, उपन्यासकार “चेतन भगत” की खिचाई करता है? हर किसी का अपना नज़रिया होता है. सामाजिक एवं पारिवारिक एकजुटता से सम्मान और शिष्टाचार की शिक्षा मिलती है. बड़े बुज़ुर्ग कहते थे पाँचों उंगलियाँ एक बराबर नहीं होती. परन्तु किसी समय का मशहूर पत्रकार अपनी राय रखने की वजह से मौखिक हिंसा का शिकार हो जाता है. क्या हमने वाकई इतनी तरक्की कर ली है की हम अपने माँ – बाप, गुरु और बड़े बुजुर्गों को गाली दे सकें?
नवयुवक डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं
नवयुवक अपनी लोकप्रियता सोशल मीडिया पर मिलने वाले लाइक और शेयर से तौल रहे हैं. यदि किसी ने एक फोटो सोशल मीडिया पर अपलोड किया और एक भी लाइक या शेयर नहीं हुआ; किसी ने कमेंट भी नहीं किया तो वह व्यक्ति अपनी क्षमता को अन्य लोगों की अपेक्षा कमतर समझने लगता है. ऐसा यदि किसी छात्र के साथ होता है, तो उसकी पढाई पर बुरा प्रभाव पड़ना होना शुरू हो जाता है. ये भी हो सकता है की उसका भविष्य पूरी तरह बर्बाद हो जाये. वह अपने जीवन में कुछ कर ही न पाए.
लड़कियां एप्लीकेशन पर उपस्थित फ़िल्टर के अनुरूप फिगर चाहती हैं. और जब यह सुलभ नहीं होता तो वे डिप्रेशन का शिकार हो जाती हैं. कई लोगों को ट्रोल होना इतना खलने लगता है की आत्महत्या तक कर लेते हैं. लोग बेवजह बार- बार सोशल मीडिया पर आते हैं और लाइक शेयर चेक करते हैं; कुछ अच्छा पढने के चक्कर में स्क्रॉल करते रहते हैं. ऐसे में कुछ अच्छा मिल भी जाये तो पढ़ नहीं पाते. ऐसे लोगों की लॉन्ग टर्म मेमोरी कम होती जाती है. तो कहना पड़ता है – Social media is no more social. आइये जानते हैं कुछ और प्रॉब्लम के बारे में…
Long Term Memory Problem
आजकल जो कुछ स्मार्टफोन या गूगल सर्च से आसानी से प्राप्त हो जाता है, वह हमें याद रखना जरूरी नहीं लगता. जब आप कोई आर्टिकल, मीम्स या मैसेज पढ़ रहे होते हैं, ऐसा लगता है यह आपको पहले से ही पता है. परंतु जैसे ही स्क्रीन ऑफ करते हैं सबकुछ भूल जाते हैं. पूरे दिन आपने जितना समय व्यतीत किया पढ़ने में, उसका 1% भी आपको याद नहीं. इस आदत की वजह से आपकी सॉर्ट टर्म मेमोरी जो कि कंप्यूटर के RAM यानी रैंडम एक्सेस मेमोरी की भांति काम करता है, ज़्यादा एक्टिव रहता है. और लॉन्ग टर्म मेमोरी जो हार्ड डिस्क की भांति इनफार्मेशन को सेव करके रखता है, जिसे आप दोबारा इस्तेमाल कर सकें, आइडल पड़ा रहता है. लंबे समय तक इसकी उपयोगिता घटने की वजह से यह काम करना बंद कर देती है.
लॉन्ग टर्म मेमोरी की समस्या पैदा होना एक बीमारी है, जिसे अल्ज़ाइमर कहते हैं. आप दिनचर्या संबंधित छोटी छोटी चीजें भूलने लगते हैं. कुछ लोगों को फ़ोन पास न होने के बावजूद वाइब्रेशन महसूस होता है. कुछ लोगों को फ़ोन की घंटी या नोटिफिकेशन ट्यून सुनाई देती है. यह भी एक तरह की बीमारी है, जो अत्यधिक फ़ोन इस्तेमाल करने से उत्पन्न हो रहा है. और फ़ोन का अधिक इस्तेमाल का एक कारण सोशल मीडिया भी है.
Social Media – A Time Killing Machine
वैज्ञानिकों का मानना है कि सोशल मीडिया पर चैटिंग करते समय हमारे दिमाग में डोपामिन जनरेट होता है. यह एक प्रकार का हार्मोन है जो हमें प्रसन्नता प्रदान करता है. यह एक नशे की आदत जैसा होता है. जब हम चैटिंग नहीं करते, तो बेचैनी की अनुभूति होने लगती है.
इसके अलावा हम सोशल मीडिया पर भले ही किसी अच्छे इरादे से गये हों, हमारा ध्यान कोई वीडियो या मैसेज खींच लेता है और हम अंतहीन स्क्रॉलिंग में व्यस्त हो जाते हैं. कब 3-4 घंटे निकल जाते हैं पता ही नहीं चलता. यह डिजिटल डिस्ट्रैक्शन हमारा सबसे बड़ा दुश्मन है. जितना इससे फायदा होगा उससे कहीं अधिक नुकसान.
क्या करें?
यदि सोशल मीडिया से आपको कोई आर्थिक या सामाजिक फायदा नहीं है, तो इसे तुरंत जीवन से निकाल फेंकना ही बेहतर है. परंतु यह नए युग का ट्रेंड है. कुछ बिज़नेस के लिए सोशल मीडिया बहुत फायदे की जगह है. परन्तु इसके इस्तेमाल करने से पहले कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है.
- सोशल मीडिया को बिज़नेस का एक अंग बनाएँ, पूरा बिज़नेस इसके भरोसे नहीं हो सकता.
- इसके लिए समय निर्धारित करें तथा एक प्लान के अनुसार सोशल मीडिया पर आकर अपना काम खत्म करें और लॉग-आउट हो जाएं.
- चैटिंग का समय सीमित रखें और केवल आवश्यक अथवा परिचित लोगों से वास्तविक परिचर्चा करें.
- काम के समय काम करें. जब परिवार में या दोस्तों के साथ हों तो उन पर ध्यान केंद्रित रखें.
- पूरे दिन में ज़्यादा से ज़्यादा 30 मिनट का समय सोशल मीडिया को दें.
- हो सके तो एप्लीकेशन नोटिफिकेशन बंद रखें. इससे आपको डिस्ट्रैक्शन कम होगा.
सोशल मीडिया एक महत्वपूर्ण प्लेटफार्म है. इस पर आकर टाइम पास के विपरीत कुछ अच्छा करिये. अफ़वाहों का बाजार मत फैलाइये. लोगों का सम्मान कीजिये. किसी की भावनाओं को आहत मत कीजिये. प्यार और मुस्कान बाँटिये, जीवन नफरतों के लिए बहुत छोटी है. निश्चय ही यह मेरा वाक्य नहीं था किंतु जिसका भी कथन है, अप्रतिम है. तो कोशिश कीजिये कि सोशल मीडिया इतना साफ सुथरा हो कि कहना न पड़े – Socal Media is no more social. धन्यवाद!
और पढ़ें: The art of saying No – क्या आप जानते हैं, कब “हाँ” कहना चाहिए कब “नहीं”?
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