If you can change your mind, You can change your life.
William James
Think Straight – अमेरिका के सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक विलिअम जेम्स ने लिखा है, “यदि आप अपना मन बदल सकते हैं, आप अपना जीवन बदल सकते हैं”. विलिअम जेम्स स्वयं कई सालों तक डिप्रेसन के शिकार रहे. परन्तु वे न केवल अपने आप को ठीक किये बल्कि अमेरिका में Philosophy School of Pragmatism की स्थापना भी किये.
Pragmatism को हिंदी में व्यवहारिकतावाद कहते हैं. यह दर्शन किसी सिद्धांत अथवा विचारधारा में निहित सत्यता, और उसके परिणामों को महत्व देता है न की सिद्धांतों को.
Pragmatism के अनुसार हमारी सोच भी फलदाई होनी चाहिए. हम अधिक सोचने के आदती हैं. हमें कुछ प्राप्त करने के लिए उसके अनुसार कार्य करना होता है. हम उस कार्य को संपन्न करके ही उसका फल प्राप्त कर सकते हैं. और उस कार्य को कैसे संपन्न करना है, हमें केवल इस विषय पर सोचना चाहिए. हमें बेवजह सैकड़ों फायदे और नुकसान के बारे में नहीं सोचना चाहिए. हम प्रायोजित कार्य को संपन्न करने के बारे में नहीं सोचते. उसके विपरीत अन्य हजारों तथ्यों पर सोच लेते हैं. यह प्रक्रिया procrastination को जन्म देती है. अतः हम कार्य टालने की आदत से ग्रसित हो जाते हैं.
हम आवश्यकता से अधिक सोचते हैं
हम अधिक सोचने के कारण उलझनों में पड़े रहते हैं. हमारी सोच परिणामों की परिधि में नहीं होती. हम उससे हटकर अंतहीन विचारों में बहते रहते हैं.
“I can’t help but feel this way” and “I feel this way because I decided to feel this way”
यदि आप कहते हैं “मैं सोचने के लिए मजबूर हूँ” या कहते हैं “मैं यह सोच रहा हूँ क्योंकि मैं यह सोचना चाहता हूँ” दोनों में जमीन आसमान का अंतर है.
हमारी सोच कुछ इस प्रकार हैं………..
जबकि हमारी सोच कुछ इस तरह होनी चाहिए ………………
प्रस्तुत चित्र द्वारा मशहूर यंग ऑथर डेरिस फरु हमारे सोचने के तरीके को दर्शाते हैं. मिस्टर डेरिस ब्लॉग भी लिखते हैं और पॉडकास्टिंग भी करते हैं. प्रस्तुत है उनकी एक बहुचर्चित किताब की समरी. इस किताब का नाम है – “Think Straight: Change your thoughts, change your mind. तो यदि आपने हमें सब्सक्राइब नहीं किया है तो आपसे गुज़ारिश है, हमें सब्सक्राइब कर लीजिये. हो सकता है आपको इसकी कोई जरुरत न हो परन्तु आपका एक शेयर किसी के जीवन में परिवर्तन ला सकती है.
नॉन फिक्शन किताबों की एक खासियत होती है. ये लेखकों की कोरी कल्पना नहीं होती. लेखक इन किताबों में अपने जीवन के उतार चढ़ाव द्वारा प्राप्त अनुभवों को सजोता है.
The story of Mr. Darius foroux
जब मिस्टर डेरिस पहली बार एक छोटे शहर से लन्दन आये, तो उन्होंने एक कमरे का फ्लैट किराये पर लिया. परन्तु सपने बड़े थे. जब वे सक्षम हुए तो उन्होंने बड़ा घर ढूढ़ना प्रारंभ किया. सौभाग्य से उन्हें अधिक प्रयास करने की आवश्यकता नहीं पड़ी और एक मनचाहा घर उनकी बजट में मिल गया. उन्होंने बिना विलम्ब किये अपने माँ – बाप को शहर बुला लिया तथा घर शिफ्ट करने के लिए अपने भाई को भी बुला लिया. क्योंकि उनके पास कार थी. इतना ही नहीं उन्होंने पुराने मकान मालिक को चाबी भी सुपुर्द कर दिया.
जब मिस्टर डेरिस अपना सामान लेकर नए मकान पर पहुंचे तो एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई. मकान की मालिकन ने अपना मन बदल लिया था. उसने मकान देने से इंकार कर दिया. अब मिस्टर डेरिस गुस्से से पागल हो रहे थे. परन्तु कुछ कर भी नहीं सकते थे. नए मकान के ओनर से उनका अग्रीमेंट भी नहीं हुआ था. आनन फानन में लिया गया निर्णय हमेशा समश्याओं का कारण बनता है. मिस्टर डेरिस को उस रात गाड़ी में ही सोना पड़ा.
समाधान के बारे में सोचे न की समस्या के बारे में
जब सुबह हुई तो उन्होंने शांत मन से समाधान के बारे में सोचना शुरू किया. उन्होंने AIRBNB पर एक हफ्ते के लिए एक फ्लैट बुक किया तथा दूसरा मकान ढूंढने लगे. एक हप्ते बाद उसी मकान मालकिन का दोबारा फ़ोन आया. मिस्टर डेरिस को वह मकान किराये पर देना चाहती था.
ऑथर कहते हैं समस्या उतनी बड़ी नहीं थी जितनी मेरी सोच ने बना दिया था. और पूरी रात उसकी वजह से बेचैनी में गुज़री. इसी तरह हम भी क्लिअरली समाधान के बारे में नहीं सोचते.
जब आपका प्रमोशन नहीं होता तो आप क्या करते हैं?
- अपने कलीग से बॉस और कंपनी के बारे में कानाफूसी करते हैं.
- प्रमोशन पाने वाले कलीग की दूसरों से बुराई करते हैं.
- अपनी योग्यता की सेखी बघारते हैं.
- चोरी छुपे दूसरा जॉब ढूंढते हैं.
- ये सारी समस्याएं सालों तक आपका पीछा करती हैं.
- आप दिन का ज्यादातर समय इसी के बारे में सोचते हुए बिताते हैं.
- प्रोडक्टिविटी पर आपका ध्यान नहीं होता.
परन्तु अपनी समस्या अपने बॉस को नहीं बताते और न ही उनसे समाधान के बारे में विचार विमर्श करते हैं. आप उनसे एक बार भी नहीं पूछते कि बॉस, मुझे ऐसा क्या करना चाहिए जिससे मैं नेक्स्ट लेवल पर प्रोमोट हो सकूँ? आप एक्सपर्ट की सलाह नहीं लेते. जिससे अपनी कमजोरी दूर कर सकें और प्रोडक्टिव बन सकें. आप किताबे नहीं पढ़ते और न ही आप अपने काम के बारे में ज्ञान प्रसस्त करते हैं.
Train your Mind
ऑथर कहते हैं, क्लियर थिंकिंग यानि प्रसस्त विचार हम तब तक नहीं रख सकते जब तक हम अपने ब्रेन को इसकी ट्रेनिंग नहीं देते. हमको क्लियर सोचने के लिए अनवरत प्रयासरत रहना पड़ता है.
जब तक हम पढाई करते हैं. स्कूल या कॉलेज में होते हैं, हमारा दिमाग अधिक नहीं भटकता. हम आवश्यक पुस्तकों का नियमित अध्ययन करते रहते हैं. जब हम पहली बार किसी जॉब को शुरू करते हैं, उस समय भी हमारे अन्दर सीखने की भूख होती है. परन्तु जैसे ही हमारा जीवन सामान्य हो जाता है, हम सब कुछ छोड़कर अपनी सफलता का आनंद लेने लगते हैं. जब हमें पता चलता है कि यह हमारा अंतिम लक्ष्य नहीं होना चाहिए, हमारा ज्ञान हमारे लिए कम पड़ जाता है. चाहकर भी हम कुछ नहीं कर पाते.
सोच की क्वालिटी पर ध्यान दें
ऑथर कहते हैं, आपकी सोच निश्चय ही महत्वपूर्ण है परन्तु हर सोच महत्वपूर्ण नहीं है. आपके सोच की क्वालिटी ज्यादा मायने रखती है. हमारे दिमाग को बिना रुके सोचने की आदत है. इन्टरनेट और टीवी के माध्यम से हम इतना ज्यादा और अनावश्यक ज्ञान ग्रहण कर रहे हैं की हमारा दिमाग उसे प्रोसेस नहीं कर पा रहा. यही कारण हैं की जब हम कुछ इन्टरनेट पर पढ़ते हैं तब हमें लगता हैं कि हम इसके बारे में सब कुछ जानते हैं.परन्तु जैसे ही हम स्क्रॉल करते हैं, उसे भूल जाते हैं.
हमें इनफार्मेशन फ़िल्टर करने की प्रैक्टिस करनी चाहिए. आपको ज्यादा सोचने पर अंकुश लगाना होगा. सही सोच या सही प्लान वही है जो आपके लिए प्रभावशाली है.
ऑथर कहते हैं हम अपने दिमाग में बैठकर घंटो टाइम पास कर सकते हैं. यह बहुत ही आसान है. आपके कण्ट्रोल में बहुत सारी चीजें नहीं होती. परन्तु जो आप कण्ट्रोल कर सकते हैं उसे तो कण्ट्रोल करना चाहिए. हर प्रॉब्लम अपने आप में एक सवाल है. इसका समाधान सोचना चाहिए. अन्यथा नहीं भटकना चाहिए.
ऑथर आपका ध्यान एक और महत्वपूर्ण विषय पर खीचना चाहते हैं. हमारा दिमाग हमेशा सही इनफार्मेशन नहीं देता है, अतः इस पर आँख बंद करके भरोसा नहीं करनी चाहिए. हमें श्रद्धा के वशीभूत होकर, अपने दिमागी तर्क पर या वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए.
सत्यता जानने का प्रयत्न करो
Pragmatism का सिद्धांत हैं की सिद्धांतों पर विश्वास मत करो. सत्यता जानने का प्रयत्न करो. अपने दिमाग को काम पर लगाओ और तथ्यों का संकलन करो.
ऑथर कहते हैं आपको दुनिया जीतने की आवश्यकता नहीं हैं. आप पहले अपने आपको जीतो. अपनी वास्तविक स्थिति को पहचानो.
- आपको क्या करना पसंद है?
- आप किस काम को अच्छी तरह कर लेते हैं?
- आपकी योग्यता क्या है?
- तथा आपकी कमजोरियां क्या हैं?
इन सबको पहचानकर ही सफलता प्राप्त कर सकते हैं.
ऑथर कहते हैं, उन्हें लगता था कि जितने भी स्मार्ट लोग होते हैं वे तुरंत निर्णय लेने में निपुण होते हैं. परन्तु ऐसा नहीं होता. हर महत्वपूर्ण निर्णय लेने से पहले आपको आवश्यक समय लेना चाहिए. जल्दबाजी में कोई फैसला लेना ठीक नहीं होता. उसके लिए आपको सही दिशा में सोचने की आवश्यकता होती है.
हम किताब को चार भागों में समराइज़ कर सकते हैं—
हमारी सोच के बारे में:
- हमें अधिक और दिशाहीन सोच पर अंकुश लगाना होगा.
- हमें समाधान के बारे में सोचना चाहिए न की समस्या के बारे में.
- जो कुछ हमारे कण्ट्रोल में नहीं है, उसे इग्नोर करना चाहिए.
- जो कुछ हमारे कण्ट्रोल में है उसके बारे में सोचना चाहिए.
- हमें 20% सोचने और 80% कार्य करने की आवश्यकता है.
निर्णय क्षमता के बारे में:
- समझदार लोग बिना सोचे समझे कोई निर्णय नहीं लेते.
- हमें दिमागी तर्क द्वारा, श्रद्धा के वशीभूत होकर, अथवा वैज्ञानिक तथ्यों पर कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए.
- सत्य को जानने का प्रयत्न करना चाहिए और इसके लिए अध्ययन करना चाहिए.
- जानकारियों को फ़िल्टर करो. जितनी आवश्यकता हैं उतना ही इनफार्मेशन अपने दिमाग में भरो. आप सब कुछ नहीं सीख सकते.
अपने आप को जीतने का प्रयत्न करो:
- नित्य प्राणायाम करो. शरीर को स्वास्थ्य रखो.
- दिमाग को रिसेट करने की आदत डालो.
- अपनी खूबियों को पहचानो.
- अपनी कमियों को जानो और दूर करो.
- सीखने की आदत डालो.
- हर सुबह अच्छी किताबें पढो.
मनी मंत्रा:
- ऐसी चीज़े मत खरीदो जिनकी आपको सख्त जरुरत नहीं है.
- हर महीने आय का 10% बचाकर रखो.
- कर्ज से दूर रहो.
- पैसे वहां लगाओ जहाँ से कुछ आय की संभावना हो.
इसके अलावा किताब में बहुत कुछ है. जाहिर सी बात है. आपको हम 10 मिनट में तो सबकुछ नहीं समझा सकते. तो यदि आप इस किताब को पढना चाहते हैं, इसका लिंक डिस्क्रिप्शन बॉक्स में मिल जायेगा. इस तरह की विडियो आप तक पहुंचती रहे, इसलिए हमें सब्सक्राइब करें और बेल आइकॉन भी दबाएँ. वीडियो को शेयर करें जिससे यह उन लोगों तक पहुंचे जिन्हें इसकी अत्यंत आवश्यकता है.
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